गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय या तुलसीदास की जीवनी बहुत ही महत्वपूर्ण रही है। उनके जीवन से हमें बहुत कुछ सिखने को मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास के जीवनी के बारे में इस Post में बात किआ गया है। इस Post को पढ़ने के बाद आपको गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय या तुलसीदास की जीवनी के बारे में पूरा ज्ञान मिल जायेगा।
गोस्वामी तुलसीदास जी भारतीय संस्कृति के महान कवि, साहित्यकार एवं दार्शनिक थे। तुलसीदास जी भगवान राम के सच्चे भक्त एवं अनुयायी थे। वे रामचरितमानस (जिसमे भगवान राम के जीवन के बारे में बताया गया है) के लेखक हैं, जो भारत की सबसे लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध काव्य ग्रंथों में से एक है।
तुलसीदास जी की रचनाएं आज भी विश्व साहित्य के उज्ज्वल अंश हैं जो हमें धर्म, भक्ति एवं नैतिकता के विभिन्न पहलुओं के बारे में समझने में मदद करती हैं। वे समाज में जाति भेद के विरोधी थे और धर्म के अनुसार सभी लोगों के लिए समानता के सिद्धांत की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
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गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक धर्म के लिए समर्पित रहे और लोगों को धर्म के महत्व को समझाने की कोशिश की। उन्होंने अपने जीवन में बहुत से उपदेश दिए जो आज भी लोगों के जीवन में उपयोगी हैं। उन्होंने धर्म, सत्य, प्रेम और करुणा के महत्व को समझाया था जो लोगों के जीवन में उन्नति लाने में मदद करता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय (जन्म, परिवार और शिक्षा):
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म विवादित है। तुलसीदास जी के जन्म के बारे में अलग अलग विद्वानों की राय अलग अलग है। तुलसीदस जी जन्म सन् 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) में सोरों शूकरक्षेत्र, जनपद- कासगंज, उत्तर प्रदेश, में एक सर्यूपारिय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम शुक्ल दुबे था, वो एक पंडित थे और संस्कृत भाषा के ज्ञानी थे। उनकी माँ का नाम हुलसी दुबे था, वो माता एक आध्यात्मिक महिला एवं गृहणी थीं।। उनके बचपन का नाम रामबोला था।
तुलसीदास जी के जन्म को लेकर एक कथा प्रचलित है। तुलसीदास जी अपनी माता के गर्व में 12 तक रहे थे। तथा जब उनका जन्म हुआ था तो उनके मुँह में सभी दांत मौजूद थे। उन्होंने जन्म के बाद पहला शब्द राम बोला था, इसलिए उनका नाम रामबोला रखा गया था।
गोस्वामी तुलसीदास जी की शिक्षा:
गोस्वामी तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गुरु नर सिंह दास जी के आश्रम प्राप्त की थी। तब वो मात्र 7 वर्ष के बालक थे। उन्होंने 14 से 15 साल की उम्र तक सनातन धर्म, संस्कृत, व्याकरण, हिन्दू साहित्य, वेद दर्शन, छः वेदांग, ज्योतिष शास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त की थी।
उन्होंने बहुत सारी धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था जैसे रामायण, महाभारत, भगवद गीता आदि। उनके गुरु नरसिंहदास चौधरी ने ही उनका नाम रामबोला से विधिवत बदल कर तुलसीदास रखा था। गुरु नरसिंहदास चौधरी ने ही इन्हें रामायण, पिंगलशास्त्र की शिक्षा दी थी और गुरु हरिहरानंद ने इन्हें संगीत की शिक्षा दी थी।
गुरु नर सिंह दास जी के आश्रम में अपनी शिक्षा समाप्त होने के बाद तुलसीदास जी अपने निवास स्थान चित्रकूट वापस आ गए और लोगों राम कथा, महाभारत कथा आदि सुनाने लगे।

तुलसीदास जी का विवाह:
तुलसीदास जी का विवाह उनके बचपन से ही निश्चित हो गया था। उनकी विवाह रतनवी नाम की एक युवती से हुआ था। रतनवी उत्तर प्रदेश के बारागांव में रहती थी और वह तुलसीदास जी को बहुत ही सुंदर और उम्दा समझती थी। उन्होंने तुलसीदास जी के प्रति अपनी ऊर्जा और उत्साह का प्रदर्शन किया और वह उनसे शादी करना चाहती थी।
गोस्वामी तुलसीदास जी उस समय अपने पिता के साथ इटावा में रहते थे और उनके विवाह की तैयारियों के लिए उन्हें बारागांव ले जाना पड़ा। रतनवी तुलसीदास जी को देखते ही उन्हें पसंद कर बैठी थी और वह उनकी शादी के लिए राजी हो गई।
तुलसीदास जी का विवाह उनकी जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना थी। उनकी पत्नी रतनवी उनसे बहुत ज्यादा धन और सम्मान की उम्मीद रखती थी, लेकिन तुलसीदास जी ऐसा नहीं कर पाए और उन्होंने अपने घर छोड़ दिया। उन्होंने धर्म की तलाश में अपना जीवन बिताया और उन्हें अपने शिक्षक नारायणदास के पास जाना पड़ा जो उनकी आध्यात्मिक गुरु थे। उन्हीं के वचनों को सुनकर इनके मन में वैराग्य के अंकुर फूट गए और 36 वर्ष की अवस्था में शूकरक्षेत्र सोरों को सदा के लिए त्यागकर वो वहाँ से चले गए।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने विवाह के बाद अपने जीवन का एक बड़ा फैसला लिया था और धर्म की तलाश में अपना जीवन बिताने का निर्णय लिया था। इस से उनकी जीवन में एक नया मोड़ आया था जो उन्हें एक आध्यात्मिक लेखक और संत बनायाजो लोग तुलसीदास जी के जीवन को अध्ययन करते हैं, वे उनके विवाह जीवन के साथ-साथ उनके धार्मिक जीवन के बारे में भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक भगवान राम की भक्ति में अपना समय व्यतीत किया और उनकी रचनाएं जैसे “रामचरितमानस” आदि भगवान राम की महिमा को व्यक्त करती हैं।
इस प्रकार, गोस्वामी तुलसीदास जी का विवाह जीवन उनके लेखन के जीवन से अलग नहीं था। वे अपने जीवन के अंतिम दिनों तक धर्म के मार्ग पर चलते रहे और भक्ति भाव से भगवान की उपासना की। इस तरह, वे एक संत और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के रूप में याद किये जाते हैं और उनके लेखन आज भी लोगों के द्वारा पढ़े जाते हैं और उन्हें प्रेरित करते हैं।
तुलसीदास जी का जीवन:
पूरा नाम (Full Name) | गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulasidas) |
बचपन का नाम (Childhood’s Name) | रामबोला |
उपनाम (Nick Name) | गोस्वामी, अभिनववाल्मीकि, इत्यादि |
जन्मतिथि (Date of birth) | 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) |
उम्र (Age) | मृत्यु के समय 112 वर्ष |
जन्म स्थान (Place of birth) | सोरों शूकरक्षेत्र, कासगंज , उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु (Death) | 1623 ई० (संवत 1680 वि०) |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
गुरु / शिक्षक (Teacher) | नरसिंहदास |
धर्म (Relegion) | हिन्दू |
दर्शन (Philosophy) | वैष्णव |
तुलसीदास जी प्रसिद्ध कथन (Quotes) | सीयराममय सब जग जानी। करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी ॥ (रामचरितमानस १.८.२) |
प्रसिद्ध साहित्यिक रचनायें | रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि |
तुलसीदास जी का परिवार:
पिता का नाम (Father) | आत्माराम शुक्ल दुबे |
माँ का नाम (Mother) | हुलसी दुबे |
पत्नी का नाम (Wife) | बुद्धिमती (रत्नावली) |
बच्चो के नाम (Children) | बेटा – तारक शैशवावस्था में ही निधन |
तुलसीदास का तपस्वी बनना:
तुलसीदास जी का तपस्वी बनना उनकी जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। उनके जीवन की एक अहम् उद्देश्य धर्म और आध्यात्मिकता की खोज थी जो उन्हें अधिक ज्ञान और समझ की तलाश में ले गयी।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने बचपन से ही धार्मिक उत्साह का प्रदर्शन किया था और उन्होंने अपनी जीवन भर ध्यान और तपस्या का अभ्यास किया। उन्होंने अपने गुरु श्री नारायणदास के मार्गदर्शन में धर्म और आध्यात्मिकता की खोज में लगे रहे।
तुलसीदास जी ने वेद, पुराण और उपनिषदों की अध्ययन किया और भगवान राम के चरित्र के अध्ययन के द्वारा उन्होंने एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित किया। उन्होंने एक अद्भुत रचना “रामचरितमानस” लिखी जो भगवान राम के चरित्र पर आधारित थी। इस रचना में उन्होंने भगवान राम के दैवीय गुणों के वर्णन किए गए थे जो उन्होंने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर लिखे थे।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक धर्म की तलाश में अपना समय व्यतीत किया। उन्होंने अपनी आखिरी सांस भी धर्म की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए ली थी। उन्हें एक महान आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है जिसने धर्म और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया।
गोस्वामी तुलसीदास का तपस्वी बनने में उनकी पत्नी का योगदान:
तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली भी उनके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण थीं। वे एक साधारण गृहस्थी थीं लेकिन उनकी अपूर्व साधना और त्याग ने उन्हें एक महान आध्यात्मिक साधिका बना दिया था।
गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन के एक अवसर पर, उन्होंने गंगा नदी के तट पर बैठकर अपनी तपस्या शुरू की थी। उन्होंने अपनी तपस्या के दौरान एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव किया था। जब वे तपस्या में थे, तब उनकी पत्नी रत्नावली ने उनके लिए अन्न और पानी का समर्पण किया था जो उन्हें तपस्या करते वक्त आवश्यक था।
रत्नावली ने अपने पति को तपस्या के दौरान पूर्ण समर्पण और सहयोग दिया था। इस तरह, उन्होंने अपने पति के आध्यात्मिक उत्साह का समर्थन किया और उनकी साधना में सहायता की। रत्नावली ने न केवल अपने पति के लिए अन्न और पानी का समर्पण किया, बल्कि वे उनकी रचनाओं का समर्थन भी करती थीं। तुलसीदास जी की रचनाओं में रत्नावली का समर्थन अधिक उल्लेखनीय है।
रत्नावली के साथ तुलसीदास जी का सम्बन्ध एक विशेष प्रकार का था। उन्होंने रत्नावली को एक महत्वपूर्ण साधु माना था जो उन्हें आध्यात्मिक सफलता की ओर ले जाती थी। इस प्रकार रत्नावली ने अपने पति के आध्यात्मिक सफलता में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में रत्नावली का उल्लेख करते हुए भी उनकी महत्ता को स्पष्ट किया था। उन्होंने रत्नावली को एक साधारण गृहस्थी से अधिक एक आध्यात्मिक साधिका के रूप में दर्शाया था। रत्नावली ने अपनी अद्भुत साधना के माध्यम से तुलसीदास जी का आध्यात्मिक जीवन पूर्ण किया था।
इस प्रकार, गोस्वामी तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली ने अपने पति के आध्यात्मिक उत्साह का समर्थन किया और उनकी साधना में सहायता दी। उन्होंने अपने पति को उनकी तपस्या के दौरान आवश्यक समर्थन प्रदान करते हुए उन्हें एक अध्यात्मिक साधक के रूप में बदल दिया। रत्नावली का योगदान तुलसीदास जी के आध्यात्मिक जीवन में अमूल्य था, जिसने उन्हें एक महान साधु के रूप में स्थापित किया था।
तुलसीदास जी की भगवान राम जी से मुलाक़ात:
गोस्वामी तुलसीदास जी को भगवान राम से मुलाकात का अनुभव हुआ था जो उन्होंने रामचरितमानस में विस्तार से बताया है। उन्होंने भगवान राम को अपने मन में ध्यान लगाकर उनसे आध्यात्मिक संवाद किया था। उन्होंने भगवान राम की कृपा से अपनी जीवन बदल दिया था और उन्हें अपने जीवन का प्रधान उद्देश्य मिल गया था।
तुलसीदास जी के अनुभवों को रामचरितमानस में विस्तार से बताया गया है जो एक महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भगवान राम के जीवन के विभिन्न पहलुओं को वर्णन किया है और उनकी भक्ति को उजागर किया है। इसलिए, तुलसीदास जी भगवान राम के एक भक्त थे और उन्होंने उनसे आध्यात्मिक संवाद किया था।
रामचरितमानस में तुलसीदास जी की भगवान राम से मुलाकात की कई कहानियां हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी उनकी राम दर्शन की इच्छा थी और उन्होंने अपनी भक्ति के बल पर भगवान राम से मिलने की प्राप्त की।
एक दिन तुलसीदास जी अपने भाई नारायण दास से मिलने के लिए लक्ष्मण घाट पर गए थे। वहां पहुँचकर तुलसीदास जी ने देखा कि एक राम भक्त जो नाम था शम्भूकण्ठ वहां भगवान राम के नाम का जप कर रहा था। तुलसीदास जी ने उससे पूछा कि आप इतना उत्सुक क्यों हैं। शम्भूकण्ठ ने उन्हें बताया कि वह दैनिक रूप से भगवान राम के नाम का जप करता है और उनसे मिलने की इच्छा रखता है।
तुलसीदास जी को शम्भूकण्ठ की भक्ति से प्रभावित होकर उनकी सहायता से उन्होंने अक्षय वट वृक्ष के नीचे जाकर भगवान राम के दर्शन किए। वहां उन्होंने भगवान राम के दर्शन के बाद संतोष प्राप्त किया और उनसे आशीर्वाद लिया। इस तरह तुलसीदास जी ने अपनी भक्ति और निष्ठा से भगवान राम से मिलने की प्राप्त की और उनके दर्शन से उन्होंने आनंद प्राप्त किया।
चित्रकूट के घाट पर तुलसीदास जी की भगवान राम जी से मुलाक़ात का वर्णन:
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
यह पंक्ति रामचरितमानस के बालकाण्ड में से है और इसमें तुलसीदास जी का वर्णन किया गया है। चित्रकूट नामक स्थान पर एक समुदाय शरण लेने के लिए आए हुए थे और वहां भगवान राम ने उनसे मिलने का वचन दिया था। इस अवसर पर तुलसीदास जी भी उनमें शामिल थे।
चन्दन घिसने का कार्य आमतौर पर उन्हीं लोगों को सौंपा जाता था जो भगवान के समीप जाते थे ताकि उनके शरीर की बदबू न आए। तुलसीदास जी भी चन्दन घिसने का कार्य करते हुए भगवान राम के दरबार में प्रवेश किया।
तिलक देना रामचरितमानस में भगवान राम के आदर्श चरित्र का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। इस पंक्ति में तुलसीदास जी रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम को तिलक देते हुए वर्णन करते हुए उनके आदर्श चरित्र का समर्थन करते हैं।
इस पंक्ति में तुलसीदास जी अपने भक्तिभाव से अभिव्यक्ति देते हुए भगवान राम को समर्थन करते हैं और उनके चरणों में अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
तुलसीदास जी की हनुमान जी से मुलाक़ात:
तुलसीदास जी के जीवन में हनुमान जी से कई मुलाकातें हुईं। चौबीस अवतार नामक एक रचना में तुलसीदास जी ने बताया है कि एक दिन उन्होंने हनुमान जी को समुद्र तट पर बैठे देखा था। वे उनसे मिलने गए और मुख्य रूप से उनसे भगवान राम के चरित्र का वर्णन करते हुए उनसे आशीर्वाद लिया था।
इसके अलावा, रामचरितमानस में भी तुलसीदास जी ने हनुमान जी के संबंध में कई बार उल्लेख किया है। वे उन्हें भगवान राम के श्रद्धालु अनुयायी के रूप में वर्णित करते हुए उनकी मदद के बारे में भी बताते हैं।
इस प्रकार, तुलसीदास जी की रचनाओं में हनुमान जी और उनके चरित्र का वर्णन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
तुलसीदास जी की प्रसिद्ध रचनायें:
तुलसीदास जी ने अपने 112 वर्ष के लम्बे जीवन काल में अनेकों काव्य रचनाएं की। तुलसीदास जी के द्वारा रचित कुछ प्रसिद्ध रचनाएं निम्नलिखित हैं:
रामचरितमानस: यह एक अधिकांश हिंदू धर्म के लोगों के लिए परिचित एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है। यह ग्रंथ भगवान राम के जीवन के विवरणों पर आधारित है और तुलसीदास जी द्वारा 16वीं सदी में रचा गया था।
विनय पत्रिका: यह एक उत्कृष्ट हिंदी कविता है जो तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई थी। इसमें वे भगवान से अपनी दुःखों का वर्णन करते हैं और उनसे क्षमा और आशीर्वाद मांगते हैं।
दोहावली: यह तुलसीदास जी की दोहों का संग्रह है। यह उनकी अधिकतर रचनाओं की तुलना में छोटी होती है, लेकिन इन दोहों में उन्होंने ज्ञान, भक्ति, धर्म और नैतिकता के विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
कबीर वाणी: यह तुलसीदास जी की कविताओं का एक संग्रह है जो संत कबीर के जीवन के उद्देश्यों और उनकी भक्ति के विषय में बताता है। तुलसीदास जी ने इसे लिखा और संसार की जनता को संत कबीर के उपदेश के साथ परिचित कराया।
इनके अलावा, तुलसीदास जी ने और भी कई रचनाएं लिखीं जैसे तुलसी रामायण, हनुमान चालीसा आदि।
रचनायें | प्रकाशित वर्ष |
रामचरितमानस | 1574 ईस्वी |
रामललानहछू | 1582 ईस्वी |
वैराग्यसंदीपनी | 1612 ईस्वी |
सतसई | |
बरवै रामायण | 1612 ईस्वी |
हनुमान बाहुक | |
कविता वली | 1612 ईस्वी |
गीतावली | |
श्रीकृष्णा गीतावली | 1571 ईस्वी |
पार्वती-मंगल | 1582 ईस्वी |
जानकी-मंगल | 1582 ईस्वी |
रामाज्ञाप्रश्न | |
दोहावली | 1583 ईस्वी |
विनय पत्रिका | 1582 ईस्वी |
छंदावली रामायण | |
कुंडलिया रामायण | |
राम शलाका | |
झूलना | |
हनुमान चालीसा | |
संकट मोचन | |
करखा रामायण | |
कलिधर्माधर्म निरूपण | |
छप्पय रामायण | |
कवित्त रामायण | |
रोला रामायण |
तुलसीदास जी की मृत्यु:
तुलसीदास जी की मृत्यु की तारीख के बारे में कुछ तथ्यों का अभाव है। लेकिन इतिहासकार मानते हैं की तुलसीदास जी जीवन के अंतिम समय में वाराणसी में ही रह रहे थे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी तुलसीदास जी की दिनचर्या पूरी तरह से रामभक्ति में ही लीन रहती थी। वाराणसी में 112 साल की उम्र में 1623 ईस्वी में तुलसीदास जी ने समाधि लेकर अपने शरीर को त्याग दिया।
उनकी मृत्यु के बाद उन्हें बहुत लोगों द्वारा सम्मानित किया गया। तुलसीदास जी की मृत्यु के बाद, उनकी रचनाओं को सम्मान देने के लिए बहुत से संस्थाएं बनाई गईं। उनकी कई रचनाओं को लोग आज भी अपनी आध्यात्मिक जिंदगी में उपयोग करते हैं।
उनकी मृत्यु के बाद उन्हें भारतीय संस्कृति का एक महान कवि माना जाता है, जिन्होंने अपनी रचनाओं से लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान दिया। आज भी उनकी रचनाएं लोगों के जीवन में उपयोगी हैं और उन्हें सम्मानित किया जाता है।
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तुलसीदास जी का जीवन के संबंध में प्रश्न एवं उत्तर FAQs:
तुलसीदास जी का जन्म कब हुआ था ?
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सन् 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) में सोरों शूकरक्षेत्र, जनपद- कासगंज, उत्तर प्रदेश, में हुआ था।
तुलसीदास जी के बचपन का क्या नाम था ?
उनके बचपन का नाम रामबोला था।
तुलसीदास जी की प्रसिद्ध रचनाएं कौन – कौन सी हैं
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अनेक रचनाएं लिखीं हैं, जो भारतीय संस्कृति के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण हैं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, कबीर वाणी।
तुलसीदास जी की पत्नी का क्या नाम था ?
गोस्वामी तुलसीदास जी की पत्नी का नाम रत्नावली था।
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना कब की ?
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना 1631 में चैत्र मास की रामनवमी से लेकर 1633 में मार्गशीर्ष के बीच की थी।
Conclusion
हमें उम्मीद है की आपको गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय, पोस्ट से कुछ न कुछ जानकारी जरूर मिला होगा। और अगर आप गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय, से जुड़ी कुछ जानकारी या सुझाव देना चाहते है तो Comment में जरूर लिखे। अगर आपको लगता है की हमारे इस गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय, में कोई पहलू miss हो गया है तो आप उसे Comments में लिख सकते हैं।
अपना कीमती समय देने के लिए धन्यबाद।