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Desh Bhakti Poem in Hindi | Easy Desh Bhakti Poems in Hindi

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Desh Bhakti Poem के माध्यम से हम अपने देश की महानता, गौरव और वीरता को समझते हैं। इन Desh Bhakti Poem में शहीदों की बलिदानी चेतना, आजादी के लिए लड़ने की तैयारी और वतन प्रेम की गहराई अद्वितीय रूप से व्यक्त होती है। ये Desh Bhakti Poem हमें याद दिलाती हैं कि हमारा देश हमारी माता है और हम उसके लिए सदैव समर्पित रहें।

इन कविताओं के माध्यम से हम अपने देश के लिए अपने जज्बे को बढ़ाते हैं और देशभक्ति के उत्कृष्ट पर्व को आत्मसात करते हैं। हमारे वीर शहीदों को नमन करते हुए, इन कविताओं को साझा करते हैं और अपनी राष्ट्रीय प्रेम और गर्व की भावना को साकार करते हैं। इस लेख में, हम आपको अलग अलग ऐसे देशभक्ति पर कविताएं, Desh Bhakti Poem, Patriotic Poems in Hindi के बारे में बताने जा रहे हैं जो हमारे देश के वीरों को समर्पित है।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा : श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला
वीरों को हरषाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,
काँपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जावे भय संकट सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

इस झंडे के नीचे निर्भय,
हो स्वराज जनता का निश्चय,
बोलो भारत माता की जय,
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

आओ प्यारे वीरों आओ,
देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

इसकी शान न जाने पावे,
चाहे जान भले ही जावे,
विश्व-विजय करके दिखलावे,
तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

सरफ़रोशी की तमन्ना : बिस्मिल अज़ीमाबादी

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

इस रचना के कवि बिस्मिल अज़ीमाबादी हैं, परन्तु मशहूर यह राम प्रसाद बिस्मिल के नाम से है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा : अल्लामा इक़बाल

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा॥

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा॥ सारे…

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का।
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा॥ सारे…

गोदी में खेलती हैं, उसकी हज़ारों नदियाँ।
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा॥ सारे….

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा॥ सारे…

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा॥ सारे…

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा॥ सारे…

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा॥ सारे…

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में।
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा॥ सारे…

जय जय प्यारा, जग से न्यारा : श्रीधर पाठक

जय जय प्यारा, जग से न्यारा,
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य सुदेश!
जय जय प्यारा भारत देश।

प्यारा देश, जय देशेश,
जय अशेष, सदस्य विशेष,
जहाँ न संभव अध का लेश,
केवल पुण्य प्रवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

स्वर्गिक शीश-फूल पृथ्वी का,
प्रेम मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति नटी का टीका
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

जय जय शुभ्र हिमाचल शृंगा
कलरव-निरत कलोलिनी गंगा
भानु प्रताप-चमत्कृत अंगा,
तेज पुंज तपवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

जगमें कोटि-कोटि जुग जीवें,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवे,
सुखद वितान सुकृत का सीवे,
रहे स्वतंत्र हमेश
जय जय प्यारा भारत देश।

न चाहूँ मान दुनिया में : राम प्रसाद बिस्मिल

न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से “बिस्मिल” तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना।।

प्यारा हिंदुस्तान है : डॉ. गणेशदत्त सारस्वत

अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है-
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।

यहीं मिला आकार ‘ज्ञेय’ को मिली नई सौग़ात है-
इसके ‘दर्शन’ का प्रकाश ही युग के लिए विहान है।

वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।
अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है-
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।
इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई-
अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।

योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।
जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।
निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ-
कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।
यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है-
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।

क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है।
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।
बल-विक्रम का सिंधु कि जिसके चरणों पर है लोटता-
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता अजेय है।
समता, ममता और एकता का पावन उद्गम यह है
देवोपम जन-जन है इसका हर पत्थर भगवान है।

हरी भरी धरती हो : कमलेश कुमार दीवान

हरी भरी धरती हो
नीला आसमान रहे
फहराता तिरँगा,
चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूर वीरता
महानता का मंत्र है
मेरा यह देश
एक अभिनव गणतंत्र है

शांति अमन चैन रहे,
खुशहाली छाये
बच्चों को बूढों को
सबको हर्षाये

हम सबके चेहरो पर
फैली मुस्कान रहे
फहराता तिरँगा चाँद
तारों के समान रहे।

जरूर पढ़े :- हाँ बिहार हूँ मैं कविता

हमें मिली आज़ादी : सजीवन मयंक

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।
आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।
व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।
हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।

हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।
जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।
प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।
हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।

लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।
उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।
हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।
सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।

विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

घायल हिन्दुस्तान -: हरिवंशराय बच्चन

मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।

दबी हुई दुबकी बैठी हैं
कलरवकारी चार दिशाएँ,
ठगी हुई, ठिठकी-सी लगतीं
नभ की चिर गतिमान हवाएँ,

अंबर के आनन के ऊपर
एक मुर्दनी-सी छाई है,

एक उदासी में डूबी हैं
तृण-तरुवर-पल्लव-लतिकाएँ;
आंधी के पहले देखा है
कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा?

इस निश्चलता के अंदर से
ही भीषण तूफान उठेगा।
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।

अलग अलग गलियों : शिवम् पटेल

अलग अलग गलियों कुचों में लोग कोन गिनता है|
साथ खड़े हों रहने वाले, देश तभी बनता है||

बड़ी बड़ी हम देश प्रेम की बात किये जाते हैं|
वक्त पड़े तो अपनों के भी काम नही आते हैं||

सरहद की रखवाली को सेना अपनी करती है|
पर अंदर सडकों पर लड़की चलने में डरती है||

युवा शक्ति का नारा सुनने में अक्सर आता है|
सही दिशा भी किसी युवा को नहीं दिखा पाता है||

खेत हमारी पूँजी है, और फसल हमारे गहने|
क्यों किसान फिर कहीं लगे हैं जान स्वयं की लेने||

थल सजा है कहीं परन्तु भूख नहीं लगती है|
किसी की बेटी भूख के मारे रात रात जगती है||

क्या सडसठ सालों में ये आजाद वतन अपना है|
क्या यही भगत सिंह और महात्मा गाँधी का सपना है||

क्या इसीलिए आज़ाद गोली खुद को मारी|
क्या इसीलिए रण में कूदी वह नन्ही सी झलकारी||

क्या इसीलिए बिस्मिल ने ‘फिर आऊंगा’ कह डाला था|
क्या ऊधम सिंह ने क्रोध को अपने इसलिए पाला था|

गर नहीं तो फिर कैसे चूके हम राष्ट्र नया गढ़ने में|
जिस आज़ादी के लिए लड़े उसकी इज्जत करने में||

जो फूल सूख कर बिखर गया वह फिर से नही खिलेगा|
जो समय हाथ से निकल गया वह वापस नहीं मिलेगा||

पर अक्लमंद को एक इशारा ही काफ़ी होता है|
सुधार ही हर गलती के लिए असली माफ़ी होता है||

देश प्रेम और राष्ट्रवाद के गान नहीं गाओ तुम|
अपने अंदर बसे भगत सिंह को जरा जगाओं तुम||

मंजिल दूर नहीं राही जब करले अटल इरादा|
अपना हाथ उठा कर ख़ुद से आज करो ये वादा||

मेरे सामने कोई कभी भी भूख से नही मरेगा|
मेरे रहते अन्याय से कोई नहीं डरेगा||

मैं पहले उसका जिसकी तत्काल मदद करनी है|
अपने आगे हर पीड़ित की हर पीड़ा हरनी है||

शपथ गृहण कर आज़ादी का उत्सव आज मनाते हैं|
देश बुलाता है आओ कुछ काम तो इसके आते हैं||

तराना-ए-बिस्मिल : राम प्रसाद बिस्मिल

बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।

लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।

खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।

कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।

यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।

हे मातृभूमि -: रामप्रसाद बिस्मिल

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में सिर नवाऊँ
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।

माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।

जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।

माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।

सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।

तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।

भारत तुझसे मेरा नाम है : गौतम कोठारी सनातनी

भारत तुझसे मेरा नाम है,
भारत तू ही मेरा धाम है|

भारत मेरी शोभा शान है,
भारत मेरा तीर्थ स्थान है|

भारत तू मेरा सम्मान है,
भारत तू मेरा अभिमान है|

भारत तू धर्मो का ताज है,
भारत तू सबका समाज है|

भारत तुझमें गीता सार है,
भारत तू अमृत की धार है|

भारत तू गुरुओं का देश है,
भारत तुझमें सुख सन्देश है|

भारत जबतक ये जीवन है,
भारत तुझको ही अर्पण है|

भारत तू मेरा आधार है,
भारत मुझको तुझसे प्यार है|

भारत तुझपे जा निसार है,
भारत तुझको नमस्कार है|

Navin Sinha

Hello there! I am NAVIN, the creative soul behind this vibrant blog where words come alive and ideas take flight.

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